* राजकुमार राव और पत्रलेखा हुए एक दूजे के
* करीब 11 साल रहे रिलेशनशिप में
* फिल्म सिटीलाइट्स में निभा चुके हैं पति पत्नी का किरदार
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राजकुमार राव और पत्रलेखा की शादी |
लंबे इंतजार के बाद बॉलीवुड अभिनेता राजकुमार राव(Rajkummar Rao) और अभिनेत्री पत्रलेखा पॉल(Patralekha) 15 नवंबर को सात फेरे लेकर हमेशा के लिए एक दूजे के हो गए। करीब 11 साल रिलेशनशिप में रहने वाले राजकुमार राव और पत्रलेखा सोमवार को शादी के पवित्र बंधन में बंधकर दोनों ने सातों जन्म साथ निभाने का वचन लिया। लेकिन यहां हम दोनों का रंगीन पर्दे पर पति पत्नी का किरदार निभाने की बात करने वाले हैं। आपको बता दें कि, शादी से पहले दोनों स्टार फिल्म सिटीलाइट्स में पति पत्नी बनकर लोगों का दिल जीत चुके हैं।
2014 में रिलीज हुई फिल्म ‘सिटीलाइट्स’ एक छोटे गांव के गरीब परिवार पर आधारित है, जो सुख भरे जीवन के तलाश में मुंबई शहर में आता है। फिल्म में राजकुमार राव ने दिपक और पत्रलेखा ने राखी का किरदार निभाया है। दोनों ने अपने अपने किरदार को सही ढंग से बखूबी निभाया है। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हो पाई थी, पर राजकुमार और पत्रलेखा के शानदार अभिनय ने दर्शकों को इमोशनल होने पर मजबूर कर दिया था। फिल्म हंसल मेहता के निर्देशन में बनी थी।
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फिल्म सिटीलाइट्स की कहानी की बात करें तो, फिल्म का मुख्य पात्र दीपक (राजकुमार राव) की कपडों की दुकान है। दीपक का व्यवसाय नहीं चलता और कर्ज में डुबने के कारण उसे दुकान बंद करना पड़ती है। तभी बिना ज्यादा सोच-विचार किए दीपक अपनी बीवी और चार-पांच साल की बेटी को लेकर मुंबई चला आता है।
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फिल्म सिटीलाइट्स |
मुंबई आते ही सीधे-सादे दीपक को मकान के नाम पर ठग लिया जाता है और उसके सारे पैसे हडप लिए जाते हैं। अपनी बेटी को भूखा ना सोना पड़े इस लिए वह मजदूरी करता है। पैसों के अभाव के कारण दीपक की पत्नी राखी भी काम के तलाश में निकलती है तभी उसे किसी बार में काम करने की सलाह दी जाती हैं। और वह बार गर्ल बन जाती है।
बाद में दीपक को एक सिक्युरिटी एजेंसी में ड्राइवर की नौकरी मिलती है। वेतन है पन्द्रह हजार रुपये। उसे अमीर और अपराधी किस्म के लोगों के काले धन के बॉक्स को इधर से उधर करना होता है। ईमानदार दीपक खुश है, लेकिन जिंदगी ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था। दीपक को नौकरी दिलाने में मदद करने वाला शख्स उससे चोरी करना चाहता है, लेकिन दीपक तैयार नहीं है। लेकिन आखिर वह उसे अपने जाल में फंसा लेता है। आखिर दीपक बुरा फंस जाता है। और अंत में राखी अपनी बेटी के साथ अकेली अपने गांव लौटती है।
संक्षिप्त में, गांव से आने वाले दीपक और राखी का रोजगार के लिए भटकना, यहां-वहां हाथ फैलाना और अपनी मजबूरियों के आगे असहाय होकर घुटने टेक देना इस फिल्म में पूरी संवेदना के साथ दिखाया गया है। राखी का एक बार में काम मांगने का दृश्य आपको पहले तो चौंकाता है, लेकिन दो पल के बाद उसका प्रभाव निशब्द कर देता है।
दरअसल गांव से शहरों की ओर काम की तलाश में जाने वाली बात आम है, इसलिए यह भारतीय फिल्म लगती है। गांव से लोग इस आशा के साथ महानगरों में जाते हैं कि कुछ न कुछ काम तो मिल ही जाएगा और उनकी दाल-रोटी निकल जाएगी। बड़े शहरों में काम तो मिलता है, लेकिन इसके साथ कई विषम परिस्थितियों और चुनौतियों से भी दो-दो हाथ करना होते हैं। यही दर्शाती है फिल्म सिटीलाइट्स।